Ghogha - Ibn Battuta Dscribe The Ghogha (1342)

Ibn Battuta Dscribe The Ghogha (1342)

"वहां से चलकर हम दुसरे दिन कुका (गोगो) पहुंचे . वह एक बहुत बड़ा नगर है . और वहां के बाज़ार भी बहोत बड़े बड़े है. हमने नगर के चार मिल पर लंगर डाला. क्योकि वह भाते का समय था. में भाते के समय अपने कुछ साथियों सहित नगर में जाने के लिए एक छोटी हलकी तरनी में चला गया. किन्तु जब हम नगर से एक मिल की दूरी पर थे, तो नौका कीचड़ में फंस गई. जब हम कीचड़ में फंस गए तो में अपने दोनों आदमियों के सहारे से चल पड़ा. क्योंकि लोंगो ने बताया की यदि पानी चढ़ गया तो बड़ी कठिनाई होगी. और इस लिए भी में तैरना न जानता था. मेने नगर में पहुँच कर बाजारों में भ्रमण किया. मेने वहां एक मस्जित देखी, जिसके विषय में प्रसिध्ध था की वह खिज्र तथा इलियास की मस्जित है. उसमे मेने मगरिब की नमाज़ पढ़ी. इस मस्जित में हैदरी फकीरों का एक समूह रहता था. उनका शेख उन्हीके साथ था. फिर में जहांज पर वापिस आ गया."

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